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तो कुछ नई बात हो

yogendra yadav
yogendra yadav
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मंदिर-मस्जिद की अलाहिद्गी
ईख्तिलाक़ से हासिल क्या होगा,
किसी मस्जिद मे सना
और मंदिर मे नमाज़ हो
तो कुछ नई बात हो.
जब तक ताबिन्दा थी लौ
क्या खूब इबादत हुई,
गुरुब-ए-आफताब के भी सजदे हो
तो कुछ नई बात हो.
दमबखून पीरों की मज़ारों पर
चादर तो सब चढ़ाते है,
शकी सर्द रातों मे ठिठुरते
मफ़्लूकों पर रिदा की सौगात हो
कुछ नई बात हो
पूर्णमासी की रातों मे
माहताब चमकते खूब देखा है,
काली अंधेरी रातों मे मुनव्वर हो चाँद
तो कुछ नई बात हो.
मोमिन ने जुनारबंद से
दिलनवाज़ी क्या कर ली
वाइज़ों के फ़तवे जारी हो गए
पाक मुहब्बत की तौसीफ़ हो
तो कुछ नई बात हो.
किसी अकारिब के इर्तिहाल पर
आहो-बुका मचा रखा है
किसी गैर के जनाज़े पर
अपना भी मन बेजार हो
तो कुछ नई बात हो
शिकस्त-ए-हयात से घायल क्या हुए
सहबा मे डूबकर बैठे है
नासाज लहरों से लड़कर
“योगी” साहिल तक पहुचे
तो कुछ नई बात हो

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