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“एक प्रयास”

yogendra yadav
yogendra yadav
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क्यों निराश होते हो?
क्यों हताश होते हो?
कठिन परिस्थितियाँ ये छणिक है
क्यो व्यर्थ उदास होते हो?
क्या तुम्हे अटल सत्य का आभास नही है?
साहस, सत्य और कठिन परिश्रम
क्या तुम्हे खुद पे विश्वास नही है?
यह प्रकृति एक सरल नियम से गतिसील होती है
वस्तुओं की विशेषता सदैव किसी अन्य के सापेक्ष होती है
ना होता गर अस्तित्व घनी अंधेरी रातों का
तो कौन जनता?
दिन के उजाले की कीमत क्या होती है?
चलो उठो एक अंतिम सर्वश्रेष्ट प्रयास करो
मंज़िल दो पग की दूरी पर है
संघर्ष करो और सफलता का विश्वास करो

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